सुलोचना कौन थी who was Sulochana
हैलो दोस्तों आपका इस लेख सुलोचना कौन थी (who was Sulochna) में बहुत-बहुत स्वागत है। इस लेख के माध्यम से आप सुलोचना का जीवन परिचय तथा कथा के बारे में जान सकेंगे।
दोस्तों रामायण में ऐसे कई पात्र हुये हैं, जो अपने शौर्य पराक्रम के कारण जाने प्रसिद्ध हुये है, लेकिन शौर्य पराक्रम के साथ-साथ कई ऐसी स्त्री पात्र भी हैं,
जिन्होंने अपनी पतिव्रत धर्म के कारण समस्त रामायण पात्रों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है। उनके पतिव्रता धर्म की शक्ति किसी पराक्रम
शौर्य से कम नहीं है। ऐसी ही एक पात्र थी "सुलोचना" तो आइए दोस्तों जानते हैं, सुलोचना के बारे में की सुलोचना कौन थी:-
सुलोचना कौन थी who was Sulochana
रामायण में कई ऐसे पात्र हुए हैं जिनकी पराक्रम तथा साहस का गुणगान करते हुए कोई नहीं थकता हैं। लेकिन रामायण में कई ऐसे स्त्री पात्र भी हैं,
जिनके पतिव्रत धर्म की शक्ति इतनी अधिक थी कि उनके सामने साहस पराक्रम का कुछ मोल ना था।
जिनमें एक थी "देवी सुलोचना" (Devi Sulochna) रामायण काल में देवी सुलोचना लंकापति रावण की पुत्रवधू तथा मेघनाथ की पत्नी थी।
जो अपने पतिव्रत धर्म के कारण रामायण काल में बहुत चर्चित हुई। सुलोचना एक निर्भीक स्त्री भी थी जिसका नाम प्रमिला प्रमिला भी था।
सुलोचना का जन्म Birth of Sulochana
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है, कि सुलोचना का जन्म चमत्कारी घटना से हुआ है। यह घटना कैलाश पर्वत पर भगवान शिव शंकर के
बासुकीनाग से सम्बंधित थी। कहा जाता है, कि एक बार माता पार्वती जी महादेव शिव शंकर के हाथ में बासुकीनाग को बांध रही थी,
तब उन्होंने बासुकीनाग को थोड़ा कसकर बांध दिया जिस कारण बासुकीनाँग के आँखों से दो आँसू निकल पड़े जिनमें से एक आँसू ने सुलोचना का जन्म लिया वहीं दूसरे आँसू से सुनैना का जन्म हुआ।
सुनैना का पालन पोषण माता नर्मदा ने माता पार्वती के आदेश पर किया और विवाह जनक महाराज से किया गया था तथा सुलोचना का पालन पोषण नाँगो के बीच हुआ इसलिए उन्हें नागकन्या कहलायी
सुलोचना एक निर्भीक स्त्री Sulochana a bold woman
सुलोचना एक निर्भीक स्त्री थी जिसने अपने पति को युद्ध स्थल में वीरोचित और निडर होकर भगवान से युद्ध करने के लिए कहा जब मेघनाथ अपने पिता लंकापति रावण को समझाने आया था
कि श्रीराम कोई और नहीं स्वयं नारायण का अवतार हैं। लेकिन रावण ने मेघनाद को ही उपदेश दे दिया तथा पित्रआज्ञा के कारण मेघनाथ युद्ध स्थल में जाने लगा किन्तु जब अपनी माँ मंदोदरी से मिला
तो मंदोदरी ने मेघनाथ को युद्धस्थल में जाने के लिए मना किया और अश्रु बहाने लगी किन्तु जब मेघनाथ अपनी पत्नि सुलोचना से मिलने के लिए जा रहा था
तो वह मन में सोच रहा था, कि माँ की भांति सुलोचना भी विलाप करने लगेगी और उसे युद्धस्थल में ना जाने के लिए कहेगी।
लेकिन मेघनाद उस समय आश्चयचकित हुआ जब सुलोचना ने एक भी आँसू नहीं बहाया और यह कहा यदि आप युद्ध में जा रहें है
तो वीरोचित युद्ध कीजिए कि भगवान भी आपकी प्रसंशा करें, जबकि सुलोचना जानती थी कि यह उसकी अंतिम मुलाक़ात है।
सुलोचना का इस प्रकार का व्यवहार देखकर मेघनाथ आश्चर्य से भर गया और उसे अपनी पत्नि सुलोचना पर गर्व महसूस हुआ।
सुलोचना की कहानी Story of Sulochana
यह शत-प्रतिशत सत्य है, कि एक पतिव्रता स्त्री की शक्ति के सामने कोई शक्ति नहीं होती। उस पतिव्रता स्त्री के सामने किसी प्रकार की माया किसी प्रकार की शक्ति का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता
और यही प्रमाणित कर दिखाया पतिव्रता सुलोचना ने सुलोचना एक धर्म परायण और पतिव्रता थी जो धर्म के मार्ग पर चलती थी। यह बात उस समय की है,
जब लक्ष्मण ने मेघनाथ का वध कर दिया था और सुलोचना ने अपने पति के साथ ही सती होने का निश्चय कर लिया था इसलिए
सुलोचना ने लंकापति रावण से प्रार्थना की कि वह उसके पति का शीश ला दे लेकिन रावण ने शत्रु के आगे हाथ फैलाने से इनकार कर दिया और कहा राम मर्यादा पुरुषोत्तम है, तुम स्वयं जाकर शीश प्राप्त कर लो
सुलोचना श्रीराम के पास अपने पति का शीश प्राप्त करने के लिए पहुँची जैसे ही भगवान श्रीराम को सुलोचना के आने का समाचार प्राप्त हुआ भगवान श्रीराम स्वयं सुलोचना उठकर पहुँचे और
देवी सुलोचना से बोले - हे देवी आप एक पतिव्रता और धर्मपरायण स्त्री है, जिससे आपके पति मेघनाथ बड़े ही पराक्रमी और शक्तिशाली थे।
तब सुलोचना ने कहा है - हे रघुकुल शिरोमणि आप तो सर्वज्ञ हैं, आप तो सब जानते हैं - हे राघवेंद्र मेरी एक विनती है आप मुझे मेरे पति का शीश दे मैं उनके साथ ही सती होना चाहती हुँ।
तभी सुग्रीव और अन्य वानर बोल उठे कि आपको कैसे ज्ञात हुआ कि आपके पति का शीश हमारे पास है। तब सुलोचना ने कहा मुझे पूरे युद्ध का वृतांत मेरे पति की एक भुजा ने लिखकर बताया है।
यह सुनकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ और सभी बोले अगर आप में इतनी ही शक्ति है तो आप आज्ञा दीजिये कि आपके पति का शीश हँसने लगे।
तभी सुलोचना ने कहा अगर मैंने मन कर्म से अपने पति की सेवा की है और में एक पतिव्रता स्त्री हुँ तो यह कटा हुआ शीश हँसने लगे तभी वह कटा हुआ शीश जोरों से हँसने लगा
और यह सब देख कर सभी आश्चर्यचकित हो गए तब भगवान श्रीराम ने कहा महाराज सुग्रीव पतिव्रता स्त्री की शक्ति सर्वोपरि है उसके आगे और किसी पराक्रम माया आदि का अर्थ नहीं है।
इसके पश्चात समस्त वानर सेना ने देवी सुलोचना को प्रणाम किया और देवी सुलोचना अपने पति का शीश लेकर सती हो गई।
दोस्तों आपने यहाँ पर सुलोचना कौन थी (Who was Sulochna) के साथ अन्य तथ्य जाने, आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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