पंच कन्याओं के नाम Panch kanyaon ke naam 

हैलो दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत इस लेख पंच कन्याओं के नाम (Panch Kanyaon Ke Name) में। दोस्तों इस लेख में आप उन देवियों के बारे में जानेंगे

जो विवाहित होने के बाबजूद भी कन्याएँ अपने गुणों के कारण कहीं जाती है। इन पंच कन्याओं ने अपने पतिव्रत धर्म का इस प्रकार बुद्धिमता से किया

की स्वयं भगवान भी इनके सामने नतमस्तक हो गए, तो दोस्तों आइए जानते हैं इन पंच कन्याओं के नाम तथा उनके बारे में संक्षिप्त वर्णन:-


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पंच कन्याओं के नाम

पंच कन्याएं कौन है Panch kanyayen koun hai 

पंचकन्या पौराणिक कालीन वे देवियाँ जिनका विवाह होने के पश्चात भी उनको कन्याओं की श्रेणी में रखा गया है। यह पंचकन्या ऐसी कन्याये है,

जिन्होंने एक से अधिक महापुरुषों का वरण किया है। फिर भी वे कन्याओं की तरह पवित्र हैं, ये पांचो कन्याएँ देव कन्याएँ है।

जिनमें से मंदोदरी तारा तथा अहिल्या का संबंध रामायण काल से है तो वही 2 कन्याएँ कुंती तथा द्रोपती का संबंध महाभारत काल से है।


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पंच कन्या श्लोक Panch kanya shlok 

पंचकन्या इस लोक - पंचकन्या इस लोक का जाप करने से महिलाएं कई प्रकार के पापों से मुक्त हो जाती हैं। श्रद्धा भाव से पंच कन्याओं के श्लोक का

जाप करने से हिंदू धर्म की महिलाएं पाप मुक्त होती हैं तथा उनके घर में सुख समृद्धि आती है पंचकन्या श्लोक निम्न प्रकार है:-

पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥- ब्रह्म पुराण
अहिल्या द्रोपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा
पंचकन्या स्वरानित्यम महापातका नाशका


पंच कन्याओं के नाम जीवन परिचय Panch kanyayon ke naam biography 

पंच कन्याओं में देवी अहिल्या तारा मंदोदरी कुंती और द्रोपती को शामिल किया गया है पंच कन्याओं के नाम तथा उनका संक्षिप्त जीवन परिचय का विवरण निम्न प्रकार है:-


द्रोपती

1. द्रौपदी Droupdi 

पंच कन्याओ में एक कन्या द्रोपती भी आती है, जो द्वापर युग से सम्बन्ध रखती है, और भगवान श्रीकृष्ण की बहिन कही जाती है।

कहा जाता है कि द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था। इसीलिए उसे याज्ञनी के नाम से भी पुकारा जाता था। द्रौपदी को उसके गुणों के कारण पंचकन्याओं में शामिल किया गया है।

कियोकि द्रोपदी अत्यंत धीरजवान, पवित्र और महान महिला थी। द्रौपदी पांचाल देश के राजा ध्रुपद पुत्री है । द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं

जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। कृष्णेयी, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री, अग्निसुता आदि अन्य नामो से भी विख्यात है।

द्रौपदी का विवाह अर्जुन से हुआ था। महाभारत काल में द्रोपती पाँच पांडवों की पत्नी थी, जिसे स्वयं अर्जुन ने द्रोपती के स्वयंवर में जीता था।

किन्तु माता कुंती की आज्ञा अनुसार वह पाँच पतियों अर्थात पांचो पांडवो की पत्नी बनी और पांचाली के नाम से प्रसिद्ध हुई। द्रौपदी के चीर हरण प्रकरण में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई।


कुंती

2. कुंती Kunti 

पांडवो की माँ भी पंच कन्याओं में गिनी जाती है। जो यदुवंशी राजा शूरसेन की कन्या थी उनका नाम पृथा था। उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम वसुदेव था।

किन्तु पृथा को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया था।

इसलिए कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रख दिया। इस तरह पृथा अर्थात कुंती अपने वास्तविक माता पिता से दूर रही। 

कुंती हमेशा साधु संतों की सेवा करती थी और अपने महल में आए महात्माओं की सेवा का कार्य स्वयं देखती थी।

एक बार कुंतीभोज के महल ऋषि दुर्वासा पधारे। जिनकी सेवा का जिम्मेदारी कुंती ने अपने कंधों उठाई कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कुंती से कहा,

'पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूँ अतः तुझे एक ऐसा मंत्र प्रदान करता हूँ जिसके प्रयोग से तुम जिस देवता का स्मरण करोगी

वह उसी क्षण तुम्हारे समक्ष प्रकट होकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करेगा।' इस तरह कुंती को एक अद्भुत मंत्र प्राप्त हो गया।

और उस मन्त्र का प्रभाव देखने के लिए कुंती ने सूर्य देवता का स्मरण किया। तथा सूर्य भगवान के आशीष से उन्होंने अविवाहित अवस्था में ही

एक पुत्र को जन्म दे दिया किन्तु लोक लाज के भय से उन्होंने उसे नदी में वहा दिया, जिसे समस्त संसार दानवीर कर्ण के नाम से जानता है।

कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पाण्डु से हुआ था। कुंती के कर्ण सहित युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम नामक चार पुत्र थे

जो महर्षि दुर्वासा के दिए मन्त्र के चमत्कार का परिणाम थे, जबकि नकुल और सहदेव पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के पुत्र थे।


मंदोदरी

3. मंदोदरी Mandodari 

मंदोदरी भी पंच कन्याओं में से एक कन्या है जिसे चिर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है। मंदोदरी राक्षसराज मयासुर की पुत्री थीं,

जो पूर्व जन्म में मधुरा नामक स्वर्ग की अप्सरा थी, किन्तु माता पार्वती के श्राप से मेढकी के रूप में जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर थी।

मंदोदरी को मेढकी से मंदोदरी का रूप सप्तऋषियों से मिला था। और सप्त ऋषियों ने ही मंदोदरी को दानव राज मय और अप्सरा हेमा को पुत्री के रूप में दिया था।

इसलिए लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी की माँ हेमा भी एक अप्सरा थी। अप्सरा की पुत्री होने के कारण मंदोदरी बेहद खूबसूरत और ऋषियों के आशीष से बुद्धिमान थी।

मंदोदरी रावण के साथ विवाह बाद दानव बनी थी। कहा जाता है की भगवान शिव शंकर के वरदान के कारण ही मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था।

कियोकि मंदोदरी भगवान शंकर की परम भक्त थी। और मंदोदरी ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था, कि उनका पति तीनों लोकों में सबसे विद्वान ओर शक्तिशाली

हो, और उन्हें रावण पति रूप में मिला। मंदोदरी कई वीर पुत्रों को जन्म दिया जिनमे मेघनाद, महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष भीकम वीर, आदि प्रमुख थे।


देवी अहिल्या

4. देवी अहिल्या Devi Ahilya

देवी अहिल्या पंच कन्याओं में से एक है, जिनकी कथा का वर्णन रामायण के बालकांड में मिलता है। देवी अहिल्या अत्यंत ही सुंदर, सुशील और पतिव्रता नारी थीं।

जिनकी रचना ब्रम्हा जी ने स्वयं की थी और धरोहर रूप में गौतम ऋषि को दिया था और बाद में ब्रम्हा जी ने उनका विवाह ऋषि गौतम से करा दिया।

अहिल्या और ऋषि गौतम दोनों ही वन में रहकर तपस्या और ध्यान करते थे। किन्तु देवराज इंद्र भी अहिल्या के सौंदर्य पर मोहित था और अहिल्या को पाना चाहता था।

इसलिए इन्द्र ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ उस वक्त छल से सहवास किया जब गौतम ऋषि प्रात: काल स्नान करने के लिए आश्रम से बाहर गए थे

लेकिन जब ऋषि गौतम को अनुभव हुआ कि अभी रात्रि शेष है और सुबह होने में समय है, और वे आश्रम की और चल पढ़े और ऋषि गौतम ने

अपने ने ही रूप में देवराज इंद्र को उनके आश्रम में अहिल्या के साथ पाया उन्होंने तुरंत इन्द्र को पहचान लिया।

ऋषि गौतम इन्द्र द्वारा किए गए इस कुकृत्य से बड़े क्रोधित हो उठे और इन्द्र तथा देवी अहिल्या को शाप देकर पत्थर की शिला बना दिया।

देवी अहिल्या हाँथ जोड़कर बार-बार क्षमा-याचना करने लगी और कहने लगी कि 'इसमें मेरा कोई दोष नहीं है', पर ऋषि ने कहा कि तुम शिला बनकर निवास करोगी।

जब भगवान विष्णु राजा दशरथ के घर जन्म लेंगे तो उसी रूप में तुम्हारा उद्धार करेंगे।


महारानी तारा

5. तारा Tara 

तारा भी पंच कन्याओं में से एक थी। जो समुद्र मंथन के दौरान निकली एक अप्सरा थी। वानरराज बाली और सुषेण दोनों ही देवी तारा को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे।

इसलिए उस वक्त यह निर्णय हुआ कि जो तारा के वामांग में खड़ा है वह उसका पति और जो दाहिने हाथ की ओर खड़ा है. वह उसका पिता होगा। इस प्रकार वानरराज बाली का विवाह तारा से हो गया।

जब भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया उसके बाद उसकी पत्नी तारा को बहुत दुख हुआ। तारा एक अप्सरा थी। और बाली को छल से मारा गया था।

यह जानकर बाली की पत्नी तारा ने श्रीराम को श्राप दे दिया। और कहा भगवान राम अपनी पत्नी सीता को पाने के बाद जल्द ही उससे फिर बिछड़ जायेंगे।

उसने यह भी कहा कि अगले जन्म में श्रीकृष्ण के रूप में उनकी मृत्यु उसी के पति (बाली) द्वारा हो जाएगी। जब श्रीराम ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था

तब उनके इस अवतार की मृत्यु का कारण एक शिकारी भील जरा (जो कि बाली का ही दूसरा जन्म था) द्वारा किया गया था।

दोस्तों इस लेख में आपने पंच कन्याओं के नाम (Panch Kanyao ke Naam) पंचकन्या श्लोक के बारे में पढ़ा आशा करता हूं यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।

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