गौतम बुद्ध पर निबंध Essay on Gautam Buddha in Hindi
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के इस लेख महात्मा गौतम बुद्ध पर निबंध (Essay on Gautam Buddh) में।
दोस्तों इस लेख महात्मा गौतम बुद्ध पर निबंध के माध्यम से आप गौतम बुद्ध के बारे में समस्त महत्वपूर्ण तथ्यों को जान पाएंगे कि महात्मा गौतम बुद्ध कौन थे?
और उन्होंने किस प्रकार से ज्ञान प्राप्त किया? तो आइए दोस्तों शुरू करते हैं, आज का यह लेख गौतम बुद्ध पर निबंध :-
गौतम बुद्ध कौन थे who was Gautam Budh
भारत देश कई ऋषि मुनियों तथा धर्त्माओं की पवित्र भूमि है, जिन्होंने मानव जीवन के परोपकार और कल्याण के लिए अपना सर्वस्य जीवन (Whole Life) समर्पित कर दिया।
उन्हीं महान पुरुषों में और महान आत्माओं में से एक महापुरुष थे "गौतम बुद्ध" भगवान का अवतार कहे जाने वाले गौतम बुद्ध भारत के शाक्य वंश (Shakya dynesty) के एक राजकुमार सिद्धार्थ थे।
जिन्होंने घर परिवार त्याग कर सत्य की खोज के लिए सन्यास जीवन ग्रहण किया और सत्य का ज्ञान प्राप्त करके बुद्ध कहलाए।
सत्य ज्ञान प्राप्त करने के बाद को महात्मा बुध कहा जाने लगा। महात्मा बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक और प्रचारक थे। उनकी शिक्षा ही सभी लोगों के लिए पथ प्रदर्शक और मार्गदर्शक थी।
गौतम बुद्ध का जन्म Birth of Gautam Buddh
बौद्ध धर्म के संस्थापक तथा भगवान कहे जाने वाले गौतम बुध का जन्म 563 ईसवी पूर्व कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नामक ग्राम में हुआ था। जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश से लगे हुए देश नेपाल में स्थित है।
गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ (Sidhdharth) था। गौतम बुद्ध के पिता जी महाराज शुद्धोधन (Shudhdhodhan) इक्ष्वाकु वंशीय शाक्य कुल के राजा थे।
गौतम बुद्ध की माता का नाम महामाया था। माता का निधन गौतम बुद्ध के जन्म के पश्चात ही हो गया था। इसलिए गौतम बुद्ध का पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था।
गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा नामक एक सुंदर कन्या से हुआ था, जिनसे उन्हें एक पुत्र राहुल उत्पन्न हुआ। गौतम बुद्ध का मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगता था।
वह हमेशा संसार के दुखों को देखकर व्यथित हो जाते थे, और एक बार साधु, मुर्दा तथा बूढ़े व्यक्ति को देख उनके मन में संन्यास की भावना प्रकट हुई
और वह बुढ़ापा, मरण विभिन्न दुखों से व्यथित होकर इन दुखों से मुक्ति पाने का मार्ग खोजने के लिए दिव्य ज्ञान (divine knowledge) की प्राप्ति के लिए 29 वर्ष की अवस्था में अपना घर परिवार राज्य छोड़कर जंगल में चले गए।
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय Life introduction of Gautam Buddh
गौतम बुद्ध का जन्म होने पर गौतम बुद्ध के नामकरण की प्रथा आयोजित हुए जिसमें 8 विद्वान ब्राह्मण उपस्थित हुए। तथा उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया
और सभी ने यह बताया कि यह बालक या तो एक महान राजा या फिर एक पवित्र धर्मात्मा (Saint) बनेगा और यह भविष्यवाणी सत्य भी हुई है।
गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन उनके निज निवास में अपनी मौसी प्रजापति गौतमी और पिता के संरक्षण में व्यतीत हुआ।
गौतम बुद्ध ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गुरु विश्वामित्र से प्राप्त की। गौतम बुद्ध अपने गुरु का आदर और सम्मान किया करते थे और अपने गुरु की हर एक बात को उनका आदेश मानकर पालन किया करते थे।
गुरु विश्वामित्र भी सिद्धार्थ / गौतम बुद्ध को अपने शिष्य और पुत्र की भांति प्रेम करते थे। उन्होंने अपने शिष्य सिद्धार्थ / गौतम बुद्ध को वेद, पुराण, उपनिषद के साथ घुड़दौड़, युद्ध कौशल,कुश्ती तीर कमान
के साथ ही परोपकार और प्रेम की भी शिक्षा दी। सिद्धार्थ के हृदय में प्रेम दया और परोपकार कूट-कूट कर भरा हुआ था। वे किसी निर्दोष पशु पक्षी आदि की हत्या देख व्यथित हो जाते थे
और उसे बचाने की पूरी कोशिश करते थे। सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की अवस्था में यशोधरा से हुआ। और अपनी पत्नी यशोधरा के साथ राजभवन में रहने लगे।
कुछ समय बाद उन्होंने एक बहुत ही सुंदर पुत्र राहुल को जन्म दिया। सिद्धार्थ के राज महल में तीन प्रकार के महल बनाए गए थे।
जो तीन ऋतुओं रहने के लिए अनुकूलित थे। जहाँ पर सभी सुविधाएँ भी उपलब्ध थी। एक बार सिद्धार्थ / गौतम बुद्ध नगर भ्रमण करने के लिए निकले
और वह एक बुजुर्ग एक शांत चित्र साधु तथा एक मुर्दे को देखकर व्यथित हो उठे और उनमें बैराग्य जाग उठा। इसलिए 29 वर्ष की अवस्था में उन्होंने दिव्य ज्ञान की खोज के लिए अपना गृह त्याग जंगलों में चले गए।
ज्ञान की प्राप्ति Acquisition of knowledge
गौतम बुद्ध के गृह त्याग ने की घटना को महाभिनिष्क्रमण (Grand eradication) कहा जाता है। वें अपनी पत्नी अपने पुत्र तथा पिता के साथ अपने परिवारजनों
तथा कपिलवस्तु को छोड़कर 29 वर्ष की अवस्था में रात को ही घर त्याग कर जंगलों में चले गए थे, और जंगलों के रास्ते होते हुए राजगृह पहुंचे।
तथा भिक्षा माँग कर अपना जीवन व्यतीत करने लगे। कुछ समय पश्चात उनकी भेंट आलार कलाम से हुई। जो सिद्धार्थ के सबसे पहले गुरु कहलाए सिद्धार्थ ने अपने गुरु से साधना लगाना और योग बल आदि सीखा।
किंतु सिद्धार्थ को इससे संतोष (Satisfaction) प्राप्त नहीं हुआ और वह उस स्थान को छोड़कर आगे निकल गए।
सिद्धार्थ ने तिल और चावल खाकर तपस्या करना प्रारंभ कर दिया किंतु इससे भी लाभ नहीं हुआ तो उन्होंने निराहार रहकर तपस्या शुरू कर दी।
सिद्धार्थ का शरीर सूखकर कांटा हो गया था। किंतु एक ज्ञान के कारण उन्होंने फिर मध्यम मार्ग से तपस्या करना प्रारंभ किया और थोड़ा कुछ खाकर प्रार्थना और तपस्या करने लगे।
गौतम बुद्ध 6 वर्ष की कठिन तपस्या के कारण बैसाखी की पूर्णिमा को निरंजना नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें सर्वोच्च ज्ञान बुद्धत्व की प्राप्ति हुई।
इसके बाद ही उन्हें बुद्ध कहा गया। और पीपल के वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से जाना गया।
महात्मा बुद्ध द्वारा शिक्षा Teachings by Mahatma Buddha
ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपना सबसे पहला उपदेश सारनाथ में पाली भाषा में दिया था। इस घटना को धर्मचक्रप्रवर्तन (Dharmachakrapravartan) के नाम से भी जाना जाता है।
और यहीं पर उन्होंने पांच मित्रों को अपना शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
महात्मा बुद्ध ने दुखों और दुखों से निजात पाने के लिए अष्टांग मार्ग (Ashtanga Path) दिया महात्मा बुद्ध ने कहा जो भी अष्टांग मार्ग पर चलता है, वह अवश्य इस जन्म और मरण से मुक्ति पा सकता है।
महात्मा बुद्ध ने यज्ञ,पशु बलि प्रथा हिंसा की घोर निंदा की महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य (Four noble truths) देते हुए कहा है कि यह जीवन दुखों से भरा हुआ है और यह दुख आर्य सत्य है।
संसार की भोग विलासों के प्रति जो इच्छा है जो तृष्णा हैं वह समुदाय आर्य सत्य है। कहा जाता है जो व्यक्ति तृष्णा के साथ मारता है वह फिर से जन्म लेता है।
महात्मा बुद्ध कहते हैं, कि तृष्णा का आशेष प्रहाण कर देना निरोध आर्य सत्य है। अर्थात जब तृष्णा ही नहीं रहेगी। तो व्यक्ति की किसी भी चीज की इच्छा नहीं होगी और ना उससे कोई दुख होगा।
और जीवन मरण से भी मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन इस निरोध को पाने का मार्ग आर्य सत्य है, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है जो निम्न प्रकार से हैं।
1.सम्यक् दृष्टि - चार आर्य सत्यों में विश्वास करना
2. सम्यक् संकल्प - स्वयं के मानसिक पर नैतिक विकास की प्रतिज्ञा लेना
3. सम्यक् वचन - कभी भी हानिकारक बातें और झूठ ना बोलना
4. सम्यक् कर्म - कोई भी हानिकारक कर्म ना करना
5. सम्यक् आजीविका - कोई भी किसी भी प्रकार का हानिकारक व्यापार ना करना
6.सम्यक् व्यायाम - स्वयं सुधारने का प्रयास करना
7. सम्यक् स्मृति - ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता प्राप्त करना
8. सम्यक् समाधि - निर्माण मोक्ष प्राप्त करने की कोशिश करना
बौद्ध संघ बौद्ध ग्रंथों तथा संगीति Buddhist Sangha Buddhist texts and councils
मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए महात्मा बुद्ध ने बौद्ध संघ की स्थापना की। जिसमें बौद्ध भिक्षुओं को प्रवेश मिलता था और उस प्रवेश कार्यक्रम को
उपसंपदा कहा जाता था। जो लोग ग्रहस्थ जीवन में रहकर बौद्ध धर्म को अपनाते थे उन्हें उपासक कहा जाने लगा।
बौद्ध संघ में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, किंतु अपने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर बौद्ध संघ में कुछ नियमों के साथ महिलाओं का प्रवेश प्रारंभ हो गया और उनकी मौसी प्रजापति गौतमी
पहली महिला बौद्ध भिक्षु बनी। तथा अलग से महिलाओं के लिए बौद्ध संघ की स्थापना हो गई। बौद्ध ग्रंथ अधिकांश पाली भाषा में रचित हैं।
बौद्ध ग्रंथ दीपवंश और महावंश से मौर्यकालीन जानकारी मिलती है। तो वही जातक ग्रंथों में बोधिसत्वों के जीवन की चर्चा वही
कथावस्तु ग्रंथ में बुद्ध के जीवन से संबंधित घटनाओं का वर्णन है। बौद्ध ग्रंथों में सबसे प्रमुख ग्रंथ है त्रिपिटक जिसके तीन अंग है:-+
सुत्तपिटक (Sutta pitaka) - इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है
विनयपिटक (Vinaya Pitaka) - विनयपिटक बौद्ध संघ के नियमों की व्याख्या का वर्णन किया गया है।
अभिघम्मपिटक (Abhidhammapitaka) - इसमें बौद्ध दर्शन के बारे में बताया गया है।
बौद्ध संगीतियाँ (Buddhist Sangeetiyan) - बौद्ध धर्म से संबंधित कुल 4 बौद्ध संगीतियाँ आयोजित हुई है।
प्रथम बौद्ध संगीति 483 ईसवी पूर्व राजगृह में अजातशत्रु शासक के द्वारा महाकश्यप की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी।
द्वितीय बौद्ध संगीति 483 ईसवी पूर्व वैशाली में शासक काला अशोक के द्वारा सर्वकामिन की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी।
तृतीय बौद्ध संगीति 250 ईसवी पूर्व पाटलिपुत्र में शासक अशोक के द्वारा की मोग्गलिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी।
चतुर्थ बौद्ध संगीति 72 ईसवी पूर्व कुंडल वन कश्मीर में शासक अशोक के शासनकाल में वसुमित्र की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी।
गौतम बुद्ध की मृत्यु Death of Gautam Buddh
महात्मा गौतम बुद्ध ने कहा था, कि अगर बौद्ध संघ में महिलाओं का प्रवेश ना होता तो वह हजारों साल जीवित रह सकते थे। गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईसवी पूर्व में 80 वर्ष की अवस्था में
मल्ल गणराज्य की राजधानी कुशीनारा (Kushinara) में भोजन के उपरांत हुई थी उनकी मृत्यु की घटना को महापरिनिर्वाण (Mahaparinirvana) कहा जाता है।
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