अगस्त्य ऋषि कौन थे, परिचय who was Agastya rishi introduction
दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है हमारे इस लेख अगस्त्य ऋषि कौन थे who was agastya rishi में दोस्तों इस लेख में आप अगस्त ऋषि के बारे में जानेंगे।
कि अगस्त ऋषि कौन थे? अगस्त ऋषि का आश्रम कहा था? इसके साथ ही आप अगस्त ऋषि के बारे में प्रमुख आश्चर्यजनक तथ्यों के बारे में भी जानेंगे।
दोस्तों भारतवर्ष ऋषि-मुनियों की भूमि है जहाँ पर कई गुणी और महान ऋषियों ने जन्म लिया है उनमें से एक ऋषि महर्षि अगस्त्य थे। तो आइए दोस्तों जानते हैं इस लेख में अगस्त्य ऋषि कौन थे:-
अगस्त्य मुनि कौन थे who was agustya muni
महर्षि अगस्त्य एक वैदिक कालीन महान ऋषि थे इनके भाई का नाम विश्रवा और पिता पुलत्स्य ऋषि थे ऐसे महान महर्षि अगस्त्य का जन्म श्रावण शुल्क पंचमी (3000 ई. पू.) काशी में हुआ था।
जिसे आज अगस्त्य कुंड के नाम से जाना जाता है। महर्षि अगस्त्य का विवाह विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था।
जो एक पतिव्रता नारी के साथ वीर और बुद्धिमान महिला थी। ऋग्वेद के कई मंत्रो की रचना महर्षि अगस्त्य ने की है
तथा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तो को बताया है। महर्षि अगस्त्य ने तपस्या काल में मंत्रो की शक्ति को देखा था। इसलिए इन्हे मन्त्रदृष्टा ऋषि भी कहा जाता है।
अगस्त्य ऋषि की पत्नी Agastya rishi ki patni
अगस्त्य ऋषि महान ऋषि पुलत्स्य के पुत्र थे। उनके भाई का नाम विश्रवा था। अगस्त्य ऋषि की पत्नी का नाम लोपमुद्रा था। जो विदर्भ देश की राजकुमारी थी।
लोपमुद्रा एक विद्वान् तथा वेदों की ज्ञाता महिला थी। वे अपने पति के साथ यज्ञ तथा तप में लगी रहती थी। लोपमुद्रा को दक्षिण भारत में
मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री माना जाता। जहाँ लोपमुद्रा का नाम कृष्णेक्षणा था। लोपमुद्रा का एक पुत्र भी था जिसका नाम इध्मवाहन था।
अगस्त्य ऋषि का आश्रम कहाँ है Ashram of Agastya rishi
भारत देश में महर्षि अगस्त्य के कई आश्रम है। उत्तराखंड के अगस्त्यमुनि नामक शहर में मुनि का प्राचीन आश्रम है।
यहाँ पर अगस्त्य ऋषि तपस्या करते थे। यही वह स्थान है जहाँ पर मुनि ने दो राक्षसों आतापी और बातापी का बध करके उनको यमलोक पहुँचाया था।
आज यहाँ पर एक प्रसिद्ध मंदिर है और आसपास के गाँव में मुनि को इष्टदेव मानकर पूजा की जाती है।
महर्षि का एक आश्रम तमिलनाडु में है, ऐसी मान्यता है की अगस्त्य मुनि का शिष्य विंध्याचल पर्वत था जो अपनी ऊंचाई पर बहुत घमंड करता था
और एक दिन कौतुहलवश उसने अपनी ऊंचाई इतनी बड़ा दी की धरती पर सूर्य की किरणे आना बंद हो गयी तथा धरती पर हाहकार मच गया
तब सभी जन अगस्त्य ऋषि के पास गए और उनसे अपने शिष्य को समझाने की विनती करने लगे तब मुनि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत से कहा मुझे दक्षिण की तरफ जाना है।
अपनी ऊंचाई कम करो और जब तक में लौट के ना आऊं अपनी ऊंचाई ना बढ़ाना विंध्याचल ने गुरु के आदेश का पालन किया और तबसे विंध्याचल की ऊंचाई स्थायी हो गयी।
अगस्त ऋषि का जन्म कैसे हुआ Birth of agustya rishi
अगस्त्य मुनि के जन्म की कथा बड़ी ही रोचक है। ऋग्वेद के अनुसार बताया गया कि मित्र तथा वरुण नामक देवताओं के पुंजीभूत से महर्षि अगस्त्य का प्रादुर्भाव हुआ था।
यह बात उस समय की है, जब एक यज्ञ में मित्र तथा वरुण नामक दो देवता उपस्थित थे और शौभाग्यवश उसी यज्ञ में अप्सरा उर्वशी भी उपस्थित थी।
जिसकी सुंदरता की चर्चा तीनों लोकों में विख्यात थी। तभी मित्र और वरुण देवताओं ने अप्सरा उर्वशी की तरफ देखा तो आसक्त हो गए और अपने वीर्य को रोकने में असफल हो गए
इस प्रकार यज्ञ के अंतराल में ही कुम्भ में स्खलित वीर्य के कारण कुम्भ से अगस्त्य स्थल में वशिष्ठ तथा जक में मत्स्य का प्रादुर्भाव हुआ। इसलिए उर्वशी को तीनों की माता कहा जाता है।
ऋषि अगस्त्य की कहानी Story of agastya rishi
हमारे सनातन धर्म में कई ऐसे ऋषि मुनि हुये है, जिनके पास अपार शक्तियों का भंडार था। और उन्होंने अपनी शक्ति के द्वारा ऐसे कार्य किये की बड़े बड़े देवता भी नहीं कर पाए।
ऐसी ही एक घटना है, की आखिर अगस्त्य मुनि ने समुद्र क्यों पिया? यह घटना उस समय की जब राक्षस राज वरतासुर के आतंक से धरती कांप उठी थी।
और देवताओं और राक्षसों में भयकर युद्ध हुआ और वरतासुर मारा गया। राक्षस राज वरतासुर के वध होने के बाद बहुत से राक्षस राजा के आभाव में देवताओं के भय से यहाँ वहाँ छिपते भागते फिर रहे थे।
और देवताओं ने राक्षसों को ढूंढ ढूंढ कर मारा। तब बहुत से राक्षस समुद्र में प्रवेश कर छुप गए और वहीं छुपे-छुपे देवराज इंद्र की वध की योजना बनाने लगे।
तब राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने राक्षसों को सुझाव दिया की पहले ऋषि मुनियों को नष्ट कर दिया जाये तो देवराज का वध करना आसान हो जायेगा।
क़्योकी देवताओं की शक्तियाँ ऋषि मुनियों के द्वारा किये गए पूजा पाठ यज्ञ आदि से दिन प्रीतिदिन बढ़ती रहती है। अब राक्षस दिन में समुद्र में छुपते और रात में निकलकर ऋषि मुनियों के यज्ञ नष्ट करते
तथा उन्हें मारकर खा जाते थे। इस प्रकार ऋषि समुदाय में हाहाकार मच गया क़्योकी देवता भी ऋषि मुनियों की रक्षा करने में असमर्थ थे।
तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और सारी घटना से अवगत कराया तो भगवान विष्णु बोले तुम्हें समुद्र को सुखाना होगा तब समुद्र सूखने पर सभी राक्षसों का वध कर सकते हो
यही मात्र एक उपाय है। किन्तु प्रश्न यह था इतने विशाल समुद्र को सुखाया कैसे जाये तब भगवान विष्णु ने कहा कि पूरे समुद्र को सुखाने की शक्ति सिर्फ अगस्त्य मुनि के पास है।
अगर तुम सब उनके पास जाकर प्रार्थना करोगे तो वह तुम्हारी बिनती अवश्य स्वीकार कर लेंगे। तब सभी देवता अगस्त मुनि के पास पहुंचे और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया।
अगस्त मुनि मान गए और समुद्र तट पर पहुंचे और देखते ही देखते सारे समुद्र को भी गए। इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर राक्षसों का वध कर दिया कुछ राक्षस डर कर पाताल लोक भी भाग गए।
इसके बाद देवताओं ने कहा अगस्त मुनि आप समुद्र का जल बापस भर दीजिए तब अगस्त मुनि ने उत्तर दिया हे! देवताओं अब यह संभव नहीं है।
क्योंकि जो समुद्र का जल जो में पिया था वह पच गया है। अब तुम्हें कोई दूसरा उपाय करना होगा इसके पश्चात सभी देवी देवता आश्चर्य हुए और ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।
ब्रह्मा जी ने कहा जब भागीरथ धरती पर गंगा लाने का प्रयत्न करेंगे तब समुद्र जल से भर जाएगा।
दोस्तों आपने इस लेख में महर्षि अगस्त्य कौन थे? उनका जीवन परिचय पड़ा आशा करता हुँ, यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।
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