महर्षि भृगु कौन थे who was Maharishi bhrigu in hindi
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इस लेख में रचयिता महर्षि भृगु का जीवन परिचय का वर्णन सरल भाषा में किया गया है। भारतवर्ष में ऐसे कई ऋषि मुनि हुए हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन मानव जाति के
कल्याण के लिए अर्पित कर दिया है। हमें ऋषि-मुनियों से धर्म सत्य तथा परोपकार की शिक्षा मिलती है, तो दोस्तों जानते है, इस लेख के माध्यम से महर्षि भृगु कौन थे:-
महर्षि भृगु कौन थे who was maharishi bhrigu in hindi
महर्षि भृगु पौराणिक काल के एक महान ऋषि थे। धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया गया है, कि महर्षि भृगु भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र थे।
महर्षि भृगु का जन्म ब्रह्मलोक सुषा नगर (वर्तमान ईरान) में 38 लाख ईसा पूर्व हुआ था। महर्षि भृगु भार्गव वंश के मूल पुरुष थे, तथा महर्षि भृगु अपनी रचनाओं तथा ऋचाओं के रचेता के नाम से भी प्रसिद्ध है।
भृगु संहिता के रचनाकार और यज्ञ कार्य स्थल पर ब्रह्मा बनने वाले महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा ली जाने के कारण तथा परीक्षा काल में भगवान विष्णु की छाती पर लात मारने के कारण भी जाना जाता है।
महर्षि भृगु का जन्म Birth of Maharishi Bhrigu
महर्षि भृगु का जन्म प्रणेता ब्रह्मा की पहली पत्नी बीरणी से हुआ था। महर्षि भृगु के बड़े भाई का नाम ऋषि अंगिरा था, जो पौराणिक काल में एक महान ऋषि हुआ करते थे।
जिस समय महर्षि भृगु का जन्म हुआ था। उस समय पर प्रणेता ब्रह्मा सुसानगर के राजा थे, जिसे आज पर्शिया या ईरान के नाम से जाना जाता है।
पिता ब्रह्मा की दो पत्नियाँ थी, जिनमें बीरणी के पुत्र थे महर्षि भृगु तथा दूसरी पत्नी थी उरपुर की उर्वशी जिनके पुत्र थे महर्षि वशिष्ठ।
महर्षि वशिष्ठ में रामायण काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि महर्षि भृगु त्रिदेवों की परीक्षा लेने के कारण विख्यात हुए।
महर्षि भृगु ने ली त्रिदेवों की परीक्षा Maharishi bhrigu took test of tridev
एक बार सरस्वती नदी के तट पर कई ऋषि मुनि उपस्थित थे, और ऋषि मुनि एक बिषय को लेकर चर्चा कर रहे थे, की त्रिदेवों में सबसे महान कौन है।
सभी ऋषि-मुनियों ने अपने- अपने विचार प्रस्तुत किए लेकिन वे इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश में सबसे महान कौन देवता है?
तब ऋषि-मुनियों ने सोचा इसका कोई अलग ही उपाय निकाला जाए और यह कार्यभार महर्षि भृगु को सौंप दिया गया। महर्षि भृगु ने कार्य अच्छी तरह से संभाला
और त्रिदेवों की परीक्षा लेने की योजना बनाई। और तुरंत त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले महर्षि भृगु पिता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें बिना प्रणाम की हुये बिना
उन्हें आदर सम्मान दिये हुये उनसे अपशब्द कहने लगे। यह सब देखकर ब्रह्मा जी को बहुत क्रोध आ गया। और वह क्रोध से लाल हो गए तथा
श्राप देने लगे किंतु तभी उन्हें ख्याल आया कि महर्षि भृगु उनके ही मानस पुत्र हैं और उन्हें क्षमा कर दिया।
इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश पर्वत गए, किंतु कैलाश पर्वत पर शिव शंकर को पहले ही पता चल गया था, कि महर्षि भृगु आने वाले हैं
और वो उनका आलिंगन करने के लिए खड़े हो गए। लेकिन महर्षि भृगु ने आलिंगन करने से साफ मना कर दिया और कहा सृष्टि में जो घटनाएं होती हैं।
वह आपके ही कारण होती हैं। ऋषि मुनि और कई निरपराध लोगों की जाने जाती हैं, जिसका कारण आप हैं। आप भूत प्रेत और राक्षसों को वरदान दे देते हैं।
यह सब सुनकर शिव शंकर को क्रोध आ गया और उन्होंने अपना त्रिशूल महर्षि भृगु को मारने के लिए उठाया किन्तु तभी माता पार्वती आ गयी और उन्होंने उनके क्रोध को शांत किया।
इसके पश्चात महर्षि भृगु क्षीरसागर पहुंचे जहाँ पर भगवान विष्णु अपने आसन पर लेटे हुए थे। महर्षि भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर लात मार दी।
जिससे भगवान विष्णु तुरंत उठ खड़े हो गए और बड़े ही मीठे स्वर में बोले हे! भगवान कहीं आपको पैर में चोट तो नहीं आई और उनके पैर को सहलाने लगे और कहने लगे हे!
भगवान आपके चरणो में तो सभी धाम बसते हैं। आपने मेरे बक्ष पर जो प्रहार किया है, उससे मुझे समस्त तीर्थों का पुण्य मिल गया है। आप तो महान हैं, देवताओं के देवता है।
महर्षि को भगवान विष्णु का व्यवहार देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, कि मैंने तो इनको लात मारी लेकिन यह हमसे इतने. प्रेम से बात कर रहें है।
तब महर्षि वापस आ गए इसके बाद उन्होंने ऋषि मुनियों से तीनों जगह के बारे में चर्चा कि तब ऋषि-मुनियों ने माना कि सबसे महान देवताओं में केवल भगवान विष्णु ही है।
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