हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ (Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen) में।

दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के प्रमुख कविताओं के साथ उनके सभी कविता संग्रह के नाम जान पाएंगे, तो आइए दोस्तों बढ़ते हैं, आज के इस लेख में हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ:-

मुंशी प्रेमचंद की कहानी परीक्षा

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen 

हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य में छायावादी युग के प्रसिद्ध हिंदी कवि हैं, जिन्होंने अपने जीवन काल में कई कविता संग्रह, आत्मकथा जैसी विधाएँ हिंदी साहित्य को प्रदान की है। हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में

सबसे अधिक प्रसिद्ध मधुशाला, मधुबाला और मधुकलश है। यहाँ पर हरिवंश राय बच्चन की लगभग 25 कविता संग्रह के नाम तथा कुछ प्रमुख कविताओं का वर्णन किया गया है:-  

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen

हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख कविता संग्रह निम्न प्रकार से हैं जो लगभग 25 हैं:-  

तेरा हार (1929), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), आत्म परिचय (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945),

हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर-उधर (1957), आरती और अंगारे

(1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967),

कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973) नई से नई-पुरानी से पुरानी (1985)

हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्ध कविताएँ Harivansh Rai Bacchan ki popular kavitaen 

यहाँ पर हरिवंश राय बच्चन की कुछ कविताओं का वर्णन किया गया है जो उनके विभिन्न कविता संग्रह से लिए गए हैं:-

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविता गुलाब की पुकार Harivansh Rai Bacchan ki kavita Gulab Ki Pukar 

हरिवंश राय बच्चन की कविता गुलाब की पुकार हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह दो चट्टानों से ली गई है:-

गुलाब की पुकार Gulab Ki Pukar 

सुना कि

गंगा और जमुना के संगम पर

एक गुलाब का फूल खिला है ।

सुना कि

उसे देखने को-देखने भर को-

तोड़ने की बात ही नहीं उठती-

मुहल्ले-मुहल्ले से,

घर-घर से;

लोग जाते हैं-

सभ्य, शौकीन, सफेदपोश, शहराती

..............................

..............................

इनको गुलाब ने,

दुर्निवार पुकारा है,

खींचा है,

क्योंकि वह कभी तो उगा है,

पंखुरियों में फूटा है, फूला है, जगा है,

जब इनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी के

दर्द ने, दुख ने,

आँसू औ' पसीने की बूंद ने, धार ने,

रक्त ने सींचा है ।

खून ने खून को पुकारा है;

मिट्टी और फूल में अटूट भाई-चारा है ।

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविता झंडा Harivansh Rai Bacchan ki kavita Jhanda 

हरिवंश राय बच्चन की यह कविता झंडा हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह तेरा हार से ली गई है।

कविता झंडा Kavita Jhanda 

हृदय हमारा करके गद्गद

भाव अनेक उठाता है,

उच्च हमारा होकर झण्डा

जब 'फर-फर' फहराता है!

अहे ! नहीं फहराता झण्डा

वायु वेग से चञ्चल हो,

हमें बुलाती है माँ भारत

हिला हिला कर अञ्चल को !

आओ युवको, चलें सुनें क्या

माता हमसे कहती आज ।

हाथ हमारे है रखना माँ

भारत के अञ्चल की लाज

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविता कोयल Harivansh Rai Bacchan ki kavita Koyal 

हरिवंश राय बच्चन की कविता कोयल हरिवंश राय बच्चन के कविता संग्रह तेरा हार से ली गई है। 

कविता कोयल Kavita Koyal 

अहे, कोयल की पहली कूक !

अचानक उसका पड़ना बोल,

हृदय में मधुरस देना घोल,

श्रवणों का उत्सुक होना, बनाना जिह्वा का मूक !

कूक, कोयल, या कोई मंत्र,

फूँक जो तू आमोद-प्रमोद,

भरेगी वसुंधरा की गोद ?

काया-कल्प-क्रिया करने का ज्ञात तुझे क्या तंत्र ?

बदल अब प्रकृति पुराना ठाट

करेगी नया-नया श्रृंगार,

सजाकर निज तन विविध प्रकार,

देखेगी ऋतुपति-प्रियतम के शुभागमन की बाट।

करेगा आकर मंद समीर

बाल-पल्लव-अधरों से बात,

ढँकेंगी तरुवर गण के गात

नई पत्तियाँ पहना उनको हरी सुकोमल चीर।

वसंती, पीले, नील, लाले,

बैंगनी आदि रंग के फूल,

फूलकर गुच्छ-गुच्छ में झूल,

झूमेंगे तरुवर शाखा में वायु-हिंडोले डाल।

मक्खियाँ कृपणा होंगी मग्न,

माँग सुमनों से रस का दान,

सुना उनको निज गुन-गुन गान,

मधु-संचय करने में होंगी तन-मन से संलग्न !

नयन खोले सर कमल समान,

बनी-वन का देखेंगे रूप—

युगल जोड़ी सुछवि अनूप;

उन कंजों पर होंगे भ्रमरों के नर्तन गुंजान।

बहेगा सरिता में जल श्वेत,

समुज्ज्वल दर्पण के अनुरूप,

देखकर जिसमें अपना रूप,

पीत कुसुम की चादर ओढ़ेंगे सरसों के खेत।

कुसुम-दल से पराग को छीन,

चुरा खिलती कलियों की गंध,

कराएगा उनका गठबंध,

पवन-पुरोहित गंध सूरज से रज सुगंध से भीन।

फिरेंगे पशु जोड़े ले संग,

संग अज-शावक, बाल-कुरंग,

फड़कते हैं जिनके प्रत्यंग,

पर्वत की चट्टानों पर कूदेंगे भरे उमंग।

पक्षियों के सुन राग-कलाप—

प्राकृतिक नाद, ग्राम सुर, ताल,

शुष्क पड़ जाएँगे तत्काल,

गंधर्वों के वाद्य-यंत्र किन्नर के मधुर अलाप।

इन्द्र अपना इन्द्रासन त्याग,

अखाड़े अपने करके बंद,

परम उत्सुक-मन दौड़ अमंद,

खोलेगा सुनने को नंदन-द्वार भूमि का राग !

करेगी मत्‍त मयूरी नृत्य

अन्य विहगों का सुनकर गान,

देख यह सुरपति लेगा मान,

परियों के नर्तन हैं केवल आडंबर के कृत्य !

अहे, फिर ‘कुऊ’ पूर्ण-आवेश !

सुनाकर तू ऋतुपति-संदेश,

लगी दिखलाने उसका वेश,

क्षणिक कल्पने मुझे घमाए तूने कितने देश !

कोकिले, पर यह तेरा राग

हमारे नग्न-बुभुक्षित देश

के लिए लाया क्या संदेश ?

साथ प्रकृति के बदलेगा इस दीन देश का भाग ?

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविता जुगनू Harivansh Rai Bacchan ki kavita juganu 

हरिवंश राय बच्चन की कविता जुगनू हरिवंश राय बच्चन के कविता संग्रह सतरंगिनी से ली गई है। 

कविता जुगनू Kavita Jugnu 

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

उठी ऐसी घटा नभ में

छिपे सब चांद औ' तारे,

उठा तूफान वह नभ में

गए बुझ दीप भी सारे,

मगर इस रात में भी लौ

लगाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

गगन में गर्व से उठउठ,

गगन में गर्व से घिरघिर,

गरज कहती घटाएँ हैं,

नहीं होगा उजाला फिर,

मगर चिर ज्योति में निष्ठा

जमाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

तिमिर के राज का ऐसा

कठिन आतंक छाया है,

उठा जो शीश सकते थे

उन्होनें सिर झुकाया है,

मगर विद्रोह की ज्वाला

जलाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

प्रलय का सब समां बांधे

प्रलय की रात है छाई,

विनाशक शक्तियों की इस

तिमिर के बीच बन आई,

मगर निर्माण में आशा

दृढ़ाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

प्रभंजन, मेघ दामिनी ने

न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,

धरा के और नभ के बीच

कुछ साबित नहीं छोड़ा,

मगर विश्वास को अपने

बचाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

प्रलय की रात में सोचे

प्रणय की बात क्या कोई,

मगर पड़ प्रेम बंधन में

समझ किसने नहीं खोई,

किसी के पंथ में पलकें

बिछाए कौन बैठा है?

अँधेरी रात में दीपक

जलाए कौन बैठा है?

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर Tha uchit ki Gandhiji ji ki nirmam Hatya per 

हरिवंश राय बच्चन की यह कविता था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर उनके कविता संग्रह खादी के फूल से ली गई है।

था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर

था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर

तारे छिप जाते, काला हो जाता अंबर,

केवल कलंक अवशिष्‍ट चंद्रमा रह जाता,

कुछ और नज़ारा

था जब ऊपर

गई नज़र।

अंबर में एक प्रतीक्षा को कौतूहल था,

तारों का आनन पहले से भी उज्‍ज्‍वल था,

वे पंथ किसी का जैसे ज्‍योतित करते हों,

नभ वात किसी के

स्‍वागत में

फिर चंचल था।

उस महाशोक में भी मन में अभिमान हुआ,

धरती के ऊपर कुछ ऐसा बलिदान हुआ,

प्रतिफलित हुआ धरणी के तप से कुछ ऐसा,

जिसका अमरों

के आँगन में

सम्‍मान हुआ।

अवनी गौरव से अंकित हों नभ के लेखे,

क्‍या लिए देवताओं ने ही यश के ठेके,

अवतार स्‍वर्ग का ही पृथ्‍वी ने जाना है,

पृथ्‍वी का अभ्‍युत्‍थान

स्‍वर्ग भी तो

देखे!

हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन की कविता वायु बहती शीत-निष्ठुर! Harivansh Rai Bacchan ki kavita bayu bahti sheet nishthur 

हरिवंश राय बच्चन की यह कविता उनके कविता संग्रह निशा निमंत्रण से ली गई है

कविता वायु बहती शीत-निष्ठुर

ताप जीवन श्वास वाली,

मृत्यु हिम उच्छवास वाली।

क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

पड़ गया पाला धरा पर,

तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर

हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

थी न सब दिन त्रासदाता

वायु ऐसी--यह बताता

एक जोड़ा पेंडुकी का डाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

दोस्तों आपने इस लेख में हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ (Harivansh Rai Bacchan ki kavitaen) उनके कविता संग्रह तथा कुछ कविताओं के बारे में पढ़ा आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

इसे भी पढ़े:-

  1. माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा
  2. मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी
  3. सुमित्रा नंदन पंत की कविता हिंदी में

0/Post a Comment/Comments

в