मंगल पांडे पर निबंध Essay on Mangal Pandey
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख मंगल पांडे पर निबंध (Essay on Mangal Pandey) में। दोस्तों इस लेख में आज आप मंगल पांडे पर निबंध पड़ेंगे।
मंगल पांडे वह एक क्रन्तिकारी था जिसकी आगाज ने भारतियों के दिलों में आजादी के बीज बोये थे। तो आइये दोस्तों करते है, शुरू ऐसे महान वीर मंगल पांडे का निबंध:-
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मंगल पांडे का जीवन परिचय Biography of Mangal Pandey
भारत में ऐसे कई वीर सपूतों ने जन्म लिया है, जिन्होंने भारत देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए अपना जीवन तक न्यौछावर कर दिया है उन्हीं में से एक महावीर थे मंगल पांडे।
प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडे का जन्म भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के एक जिले बलिया के छोटे से गांव नगमा में हिन्दु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पांडे के पिता जी का नाम दिवाकर पांडे थे,
जिनकी माली हालत ठीक नहीं थी, वे एक बहुत ही गरीब व्यक्ति थे और बड़े ही मुश्किल से अपने घर का खर्च चला पाते थे। मंगल पांडे की माता जी का नाम अभय रानी था,
जो एक धार्मिक विचारों वाली साहसी महिला हुआ करती थी। पांडे की प्रारंभिक शिक्षा उनके घर पर संपन्न हुई उन्होंने घर पर ही संस्कृत के साथ हिंदी अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया तथा 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1849 से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक के पद पर नौकरी कर ली। उस समय में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में
सिपाही के पद पर अधिकतर मुसलमानों को और ब्राह्मणों को ही लिया जाता था। मंगल पांडे को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाही का पद किसी ब्रिगेडियर ने उनकी कद काठी तथा मजबूत शरीर को देखकर दिया था। मंगल पांडे को 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही के रूप में शामिल किया गया और 1950 में बैरकपुर छावनी में स्थानांतरित कर दिया गया।
मंगल पांडे का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान Contribution of Mangal Pandey in freedom struggle
मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के जनक थे यह वो स्वतंत्रता संग्राम था, जिंसने सम्पूर्ण देश के लोगों में अंग्रेजो और उनके शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अंग्रेजो के प्रति वगावत कर दी थी।
यह बात उस समय की है, जब अंग्रेजों ने अपनी सेना के सिपाहियों के लिए एक ऐसी राइफल का निर्माण किया था, जिसके कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का उपयोग होना था और वह कारतूस बन्दूक में डालने से पहले मुँह से खोलना पड़ता था,
और अंग्रेज सेना में हिन्दु और मुशलमान सैनिक अधिक थे, जिससे हिंदुओं और मुस्लिमों का धर्म भ्रष्ट होने का खतरा था। इसीकारण मंगल पांडे इस राइफल और कारतूस के उपयोग का बहुत विरोध कर रहे थे।
सन् 1857 की क्रांति के दौरान यह विद्रोह जंगल में आग की तरह संपूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में सेना तथा मुस्लिम और ब्राम्हण जनता में फैल गया। इसके आलावा इसका प्रभाव भारत की कई अन्य जनजातियों तथा अन्य समुदाय पर भी देखने को मिला।
इस विद्रोह ने भारतीय सिपाहियों के ह्रदय में लगी आग को शोलों में परिवर्तित कर दिया। मंगल पांडे ने इस विद्रोह का आवाहन किया और प्रत्येक भारतीय के लिए एक महान नायक प्रथम स्वतंत्रता सेनानी बन गए।
इस विद्रोह ने उस समय भयानक आग का रूप लिया जिस समय ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ।
इन कारतूसो को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था, और यह कारतूस गाय और सूअर की चर्बी से बने थे इस कारण सम्पूर्ण देश में फैली अफवाह फैल गयी और भारतीय हिन्दु मुस्लिम सैनिकों के मन में घर कर गई कि अंग्रेज हिंदुस्तान का धर्म भ्रष्ट करना चाहते है, क्योंकि यह हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए पाप कर्म था।
दूसरी तरफ भारतीय सैनिकों के साथ अंग्रेज भेदभाव करते थे, जो मान सम्मान तथा वेतन अंग्रेज सैनिक को मिलता वह भारतीय सैनिक को नहीं मिलता था।
इसलिए भारतीय सेना में असंतोष भी व्याप्त था तथा गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूसों से संबंधित अफवाहों ने असंतोष में आग में घी डालने का काम कर किया।
इसके बाद गाय और सूअर की चर्बी युक्त कारतूस 9 फरवरी सन् 1857 को पैदल सेनाओं को बाँटा गया तो सबसे पहले मंगल पांडे ने उन कारतूसों को लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन ले गए और वर्दी उतारने का हुक्म दिया गया।
मंगल पांडे ने उनके आदेश मानने से भी इनकार कर दिया। कुछ समय बाद 29 मार्च सन् 1857 उनकी वर्दी छीनने के लिए आगे बढे तो मंगल पांडे ने अँग्रेज़ अफसर लेफ्टिनेंट बाग पर आक्रमण कर दिया और उन्हें घायल कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ।
मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च सन् 1857 को अंग्रेज के विरुद्ध बिगुल बजा दिया। मंगल पांडे अब पूरी तरह अंग्रेजो के खिलाफ हो गए और अपने अन्य साथियों के खुलेआम समर्थन का आवाहन करने लगे,
किन्तु उस समय अंग्रेजो के भय के कारण किसी ने भी उनका समर्थन नहीं किया। उस समय जनरल जान हेएरसेये ने जमीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया, पर ज़मीदार ने मना कर दिया।
अंग्रेज अफसर ने सभी भारतीय सिपाहियों को मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने के लिए कहा, किन्तु सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट के सिपाहियों ने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया।
तब जाकर अंग्रेजी सिपाहियों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 6 अप्रैल सन् 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई, किन्तु फैसले के अनुसार 18 अप्रैल सन् 1857 को फांसी ना देकर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पांडे को फांसी की निर्धारित तिथि के 10 दिन पूर्व अर्थात 8 अप्रैल सन् 1857 को ही फांसी दे दी।
इसलिए मंगल पांडे की इस शहादत की खबर पूरे देश में फैल गई और उनके द्वारा भड़कायी गई ज्वाला से अंग्रेज शासन पूरी तरह हिल गया, किन्तु अंग्रेजों की दमनकारी नीति ने इस क्रांति को दबा लिया।
एक महीने बाद फिरसे 10 मई सन् 1857 को मेरठ के छावनी में बगावत हो गई, जिससे अंग्रेजों को अस्पष्ट संदेश मिल गया था, कि अब भारत में राज्य करना आसान नहीं है।
इसके बाद ही हिंदुस्तान में 34735 नए अंग्रेजी कानून लागू किए। ताकि मंगल पांडे जैसा विद्रोह दोबारा कोई सैनिक ना कर सकें। तुरंत मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए थे उसने अंग्रेजी हुकूमत को 100 साल के अंदर ही भारत से उखाड़ फेंक दिया।
मंगल पांडे को सम्मान Respect to mangal pandey
मंगल पांडे भारत के वह वीर सपूत थे, जिन्होंने भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए भारतीय लोगों के दिलों में स्वतंत्रता तथा अधिकार की चिंगारी जलाई और कालांतर में आजादी भी प्राप्त हुई।
भारत सरकार के द्वारा ऐसे वीर सपूत के सम्मान में 5 अक्टूबर 1984 को उनकी छवि वाला एक डाक टिकट जारी किया गया ताकि भारतीय लोग उनकी सहादत को याद रखें। इस डाक टिकट और साथ में पहले दिन के कवर को दिल्ली के कलाकार सीआर पकरशी द्वारा डिजाइन किया, जबकि बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान नामक एक पार्क की स्थापना की गई है,
जहां पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला किया था और बाद में उन्हें फांसी दी गई थी। यह स्थान हमेशा ही भारतीयों के दिलों में वीरता और साहस की अमर ज्योति को बुझने नहीं देता है। वहीं 12 अगस्त 2005 को केतन मेहता द्वारा निर्देशित फिल्म मंगल पांडेय: द राइजिंग मंगल पांडे की वीरता तथा अंग्रेजो के
खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर बनी जिसमें रानी मुखर्जी, अमीषा पटेल, टोबी स्टीफेंस के साथ भारतीय अभिनेता आमिर खान (मंगल पांडे की bhumika)अभिनीत आदि थे। यह फिल्म विद्रोह की ओर ले जाने वाली घटनाओं के अनुक्रम पर आधारित थी।
निष्कर्ष Conclusion
मंगल पांडे भारत देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी तथा वीर पुरुष थे, जिन्होंने अंग्रेजो की काली नीति के विरुद्ध अकेले ही संघर्ष छेड़ दिया।
जिनके इस प्रयास से लगभग सभी भारतीय सिपाहियों के दिलों में अंग्रेजों के प्रति असंतोष की भावना को प्रज्जवलित कर आग का रूप दे दिया तथा स्वतंत्रता संग्राम छिड़ गया।
उनकी मृत्यु के बाद सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाईयाँ, और विरोध प्रदर्शन होने लगे और लगातार प्रयास तथा वलिदान के बाद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया।
दोस्तों आपने यहाँ पर मंगल पांडे पर निबंध (Essay on Mangal pandey) पढ़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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