विद्यार्थी जीवन पर निबंध Essay on student life
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख विद्यार्थी जीवन पर निबंध (Essay on student life) में।
दोस्तों इस लेख द्वारा आप विद्यार्थी जीवन पर निबंध पड़ेंगे जो कक्षा 1 से 12 वीं तथा उच्च कक्षाओं में अक्सर पूँछा जाता है। तो आइये शुरू करते है यह लेख विद्यार्थी जीवन पर निबंध:-
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प्रस्तावना Preface
जो बालक विद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं, अपनी बुद्धि का विकास करते हैं, उनको हम विद्यार्थी के नाम से पुकारते हैं और विद्यार्थी किसी भी देश के कर्णधार होते हैं, क्योंकि विद्यार्थियों को ही देश का भविष्य कहा जाता है क्योंकि यही विद्यार्थी आगे चलकर देश के विकास में अपनी भूमिका निभाते हैं।
कोई विद्यार्थी आईएएस बनता है तो कोई विद्यार्थी आईपीएस अधिकारी बनता है तो वहीं कई विद्यार्थी राजनेता भी बन जाते हैं जो देश के विकास देश के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,
इसीलिए विद्यार्थियों का वह काल जिसमें विद्यार्थी अपनी बुद्धि तथा शारीरिक और मानसिक विकास करते हैं और शिक्षा प्राप्त करते हैं विद्यार्थी काल या विद्यार्थी जीवन (Student life) कहा जाता है।
विद्यार्थी जीवन की स्थिति Condition of Student
जब बच्चे का जन्म होता है, तो वह अबोध बच्चा होता है, किंतु जब वह बचपन अवस्था में प्रवेश करता है और चार-पाँच साल का होता है, तो वह विद्यालय जाने लगता है और विद्यालय जाने पर ही उसे अपने जीवन के लक्ष्य
के बारे में उसे अपने जीवन की सही दिशा के बारे में पता चलता है। शिक्षा के द्वारा वह अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है, इसलिए विद्यार्थी जीवन वह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें बालक जो कुछ भी सीखता है वह मृत्यु पर्यंत तक उसे काम आता है।
विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी को अपने जीवन की सही दिशा के बारे में जानकारी मिलती है, इसीलिए विद्यार्थी जीवन को हमें बड़ी ही सतर्कता के साथ बिताना चाहिए, क्योंकि हम जानते हैं, कि विद्यार्थी जीवन में ही हमारा
बौद्धिक विकास, मनोवैज्ञानिक विकास, शैक्षिक विकास, सामाजिक विकास, नैतिक विकास के साथ ही शारीरिक विकास भी होता है, इसीलिए यह विकास मृत्यु पर्यंत तक उपयोगी रहता है, क्योंकि छवि जो विधार्थी के मस्तिष्क पर पड़ती है वह आजीवन नहीं मिटती।
विद्यार्थी जीवन का महत्व Importence of student life
विद्यार्थी जीवन का महत्व सभी मनुष्य के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण और लाभदायक होता है, क्योंकि विद्यार्थी जीवन यह एक ऐसा जीवन होता है, जिसमें मनुष्य केवल विद्या अध्ययन ही नहीं करता वह अपने चारित्रिक और नैतिक विकास को भी प्रेरित करता है।
विद्यार्थी जीवन में ही मनुष्य विभिन्न सद्गुण न्याय, धर्म, दया, करुणा, प्रेम आदि को सीखता है। वही उसके हृदय में शिष्टाचार और अनुशासन जैसी प्रवृतियां भी जन्म ले लेती है, जिनका लाभ वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव तक प्राप्त करता है।
विद्यार्थी जीवन में ही विद्यार्थी विभिन्न महापुरुषों के गुणों के बारे में पढ़ते हैं, उनसे कई प्रकार के गुणों को सीखते हैं, महापुरुषों के चरित्र की सद्भावनाओं को ग्रहण करते हैं और अपने जीवन को आलोकिक बनाते हैं।
विद्यार्थी जीवन में मनुष्य हर क्षेत्र का विकास होता है, जो विद्यार्थी चरित्रवान होता है वह अपने जीवन में हर एक लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता रखता है, किंतु जो चरित्रहीन होता है, वह अपने जीवन में कहीं का नहीं रहता, इसीलिए विद्यार्थी जीवन एक ऐसा जीवन है,
यहाँ उत्तम चरित्र का निर्माण हो सकता है। इसलिए कहा जा सकता है, कि विद्यार्थी जीवन का महत्व मनुष्य के संपूर्ण जीवन के लिए रहता है। विद्यार्थी जीवन में मनुष्य जो कुछ भी सीखता है, जो कुछ भी ज्ञानार्जन करता है। वह उसके बलबूते दुनिया में वही प्राप्त करता है जो उस ज्ञान के द्वारा मिलना चाहिए।
विद्यार्थियों के गुण Quality of student
भारत देश में कई विद्वान विद्यार्थी हुए हैं, जिन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही ऐसे सद्गुणों और ज्ञान को प्राप्त किया है जिसके द्वारा हमारा देश आज भी प्रकाशमान होता रहता है। भारत देश के कुछ विचारको और पूर्वजों ने विद्यार्थियों के गुणों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है:-
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्याग विद्यार्थी पंच लक्षणम्।।
अर्थात विद्यार्थी का प्रयास कोवा जैसा होना चाहिए जैसे कि कोई भी कौवा किसी भी चीज को प्राप्त करने के लिए हमेशा ही उसे एकटक देखे रहता है और जैसे ही मौका मिलता है वह उसे छीन लेता है
या प्राप्त कर लेता है। वही विद्यार्थी का ध्यान वक अर्थात बगले जैसा होना चाहिए जो नदी या तालाब में ध्यान लगा कर शिकार की प्रतीक्षा करता है और उसे तुरंत पा कर लेता है, वही विद्यार्थी की निद्रा भी स्वान (कुत्ते) जैसी होनी चाहिए
अर्थात जिस प्रकार से स्वान छोटी सी चीज की भी आहट पाकर जाग जाते हैं वहीं विद्यार्थी की भी होनी चाहिए। विद्यार्थी को अल्पाहारी होना चाहिए,
ताकि वह सुख की नींद ना सो पाए अर्थात उसे कम खाना चाहिए और ग्रहत्याग भी विद्यार्थी का लक्षण होता है। यह पाँच उत्तम लक्षण विद्यार्थी में अवश्य होनी चाहिए।
उत्तम विद्या लीजिए जदपि नीच पे होय।
परो अपावन ठोर पे कंचन तजे ना कोय।।
विद्यार्थी का पहला काम विद्या अध्ययन करना होता है, इसीलिए अगर उत्तम विद्या जिससे भी मिले चाहे वह नीच ही क्यों ना हो हमें लें लेनी लेनी चाहिए।
अर्थात विद्यार्थी का यह भी गुण होता है कि विद्यार्थी को केवल विद्या ग्रहण विद्या प्राप्त करने पर जोर देना चाहिए चाहे वह विद्या हमें किसी भी ऊंच नीच व्यक्ति से ही प्राप्त हो रही हो। विद्यार्थी को अनुशासन पालन और संयमित भी होना चाहिए।
गुरु की सेवा करनी चाहिए, भक्ति करनी चाहिए और उनका आदर करना चाहिए, विद्यार्थियों को चरित्रवान भी बनना चाहिए, जिसके लिए उन्हें अच्छी संगति का प्रयोग करना चाहिए, चरित्रवान रहने से मन नियंत्रित रहता है,
वही शारीरिक और मानसिक विकास पर ध्यान देना चाहिए, इसीलिए जो भी विद्यार्थी इन गुणों को धारण करता है, उसे विद्या तो प्राप्त होती ही है,
साथ ही एक अच्छा चरित्र एक उत्तम शरीर भी प्राप्त हो जाता है, जिसके लाभ उसे जीवन भर प्राप्त होते हैं। कुछ संस्कृत आचार्य ने इस विषय में कहा है कि:-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्दोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोमन:।।
आज का विद्यार्थी Today' student
प्राचीन काल में जो विद्यार्थी जीवन था वह आज के विद्यार्थी जीवन से बिल्कुल ही बदल गया है। आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन हो गया है और वह हमेशा ही स्वच्छंदता चाहता है। वह चाहता है,
कि वह अपनी मर्जी से कोई भी कार्य कर सकें। आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन तो है ही साथ में उसके हृदय में दया और विनय भी नहीं है। वह अपने माता-पिता के साथ ही गुरुजनों भाई बहनों का भी अपमान करता है।
आज का विद्यार्थी केबल विद्या के लिए शिक्षा या विद्यालय नहीं जाता है वह केवल डिग्री अर्जन करने के लिए ही विद्यालय जाता है और एक अच्छी नौकरी पाना ही उसका उद्देश्य रह जाता है।
आज का विद्यार्थी गुरुजनों का सम्मान नहीं करता है, गुरुजनों की बात नहीं मानता है, आज का विद्यार्थी विनम्र नहीं है, आज का विद्यार्थी तो लड़ाई-झगड़ों में लिप्त है, आज का विद्यार्थी आंदोलन नेतागिरी में
लिप्त है, आज का विद्यार्थी ऐसी आसामाजिक गतिविधियों में लिप्त होता जा रहा है, जिससे हमारे समाज पर बुरा प्रभाव तो पड़ता ही है साथ ही हमारा देश दुर्गति की कगार पर पहुंच रहा है।
विद्यार्थी के कर्तव्य Duties of student
हमारा भारत देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था, तब से यह हमारा देश स्वतंत्र देश है। इसलिए विधार्थियों को अपने भारत देश की रक्षा करनी चाहिए वह विद्यार्थी का पहला धर्म और कर्म होता है,
इसीलिए भारत वर्ष के विद्यार्थी को एक आदर्श विद्यार्थी बनना चाहिए। विद्यार्थी का लक्ष्य विद्या अर्जन होना चाहिए, किंतु यह विद्या केवल नौकरी के लिए हो तो वह ठीक नहीं है, यह विद्या विनम्रता,
दया करुणा बूढ़े बुजुर्गों की सेवा के लिए होना चाहिए, इसीलिए आज के विद्यार्थी को इसके बारे में समझना चाहिए और विद्या अर्जन को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए ना कि किसी प्रकार की नौकरी प्राप्त करने का लक्ष्य
विद्यार्थी को शिक्षित होकर अपने समाज को शिक्षित करना चाहिए, समाज में हो रही विभिन्न प्रकार की कुरीतियों को नष्ट करने कर उन्हें बंद करने का प्रयास करना चाहिए, देश की संपत्ति की रक्षा करना भी विद्यार्थियों का कर्तव्य होता है।
अपने समाज के आसपास स्वच्छता बनाए रखना एक दूसरे के प्रति प्रेम दया भावना बनाए रखना भी प्रमुख कर्तव्य माना जाता है।
उपसंहार Conclusion
विद्यार्थी हमारे देश का भविष्य निर्माता होता है, इसीलिए विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थी जीवन को सफल बनाने का प्रयास करें।
विद्यार्थी जीवन में वह अपनी शारीरिक और मानसिक विकास को पूरी तरह से प्राप्त करें। विद्यार्थी को अपने विद्यार्थी जीवन को मौज मस्ती में ही नहीं बता देना चाहिए, क्योंकि विद्यार्थी की सफलता ही किसी देश की सफलता पर निर्भर करती है।
दोस्तों आपने यहाँ पर विद्यार्थी जीवन पर निबंध (Vidyarthi jeevan par nibandh) पढ़ा. आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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